कर्नाटक के समान अन्य राज्य भी मंदिरों को सरकारीकरण से मुक्त करें !

कुछ समय पूर्व ही कर्नाटक के मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई ने कर्नाटक के सर्व मंदिर सरकारी नियंत्रण से मुक्त करने का निर्णय लिया है । उससे संबंधित कानून आनेवाले वित्तीय वर्ष के अधिवेशन में प्रस्तुत किया जाएगा, ऐसा उन्होंने घोषित किया है । इस निर्णय का हिन्दू जनजागृति समिति मनःपूर्वक स्वागत करती है । हिन्दू जनजागृति समिति और अनेक समवैचारिक संगठनों की अनेक वर्षों से यह मांग थी । कर्नाटक राज्य के समान ही देश के अन्य राज्य भी राज्य सरकार द्वारा नियंत्रण में लिए गए हिन्दुओं के सर्व मंदिर सरकारीकरण से मुक्त करें तथा उन्हें भक्तों को सौपें, ऐसी मांग हिन्दू जनजागृति समिति ने की है ।

कर्नाटक में विधानसभा के चुनाव से पहले भाजपा ने पिछले चुनाव घोषणापत्र में इससे संबंधित घोषणा की थी । आज देश की अनेक राज्य सरकारें तथा केंद्र सरकार उनके प्रतिष्ठान ठीक से न चला पाने के कारण उनका निजीकरण कर रही हैं । अनेक शासकीय उद्योग बेचे जा रहे हैं । ऐसा होते हुए केवल हिंदुओं के मंदिरों का सरकारीकरण क्यों किया जा रहा है । इस संबंध में हम निरंतर जागृति कर रहे थे ।

स्वतंत्रता के पश्‍चात गत 75 वर्षों में देश की मस्जिदें और चर्च के सरकारीकरण के संबंध में एक शब्द भी न बोलने वाली कांग्रेस ने कर्नाटक के मंदिरों का सरकारी नियंत्रण हटाने का तीव्र विरोध किया है । मंदिर सरकारीकरण से मुक्त करने का विरोध करना दुर्भाग्यपूर्ण है तथा यह कांग्रेस की ‘विनाशकाले विपरीत बुद्धि’ है । कर्नाटक की कांग्रेस के नेता डी.के. शिवकुमार ने कहा है कि मंदिर सरकार की संपत्ति हैं । कांग्रेस ने कभी चर्च अथवा मस्जिद को सरकार की संपत्ति कहने का साहस किया है क्या ? वर्ष 6 जनवरी 2014 को सर्वोच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति डॉ. बी.एस. चव्हाण और न्यायमूर्ति शरद बोबडे की खंडपीठ ने तमिलनाडु के श्री नटराज मंदिर प्रकरण में ऐतिहासिक निर्णय देते हुए कहा था, देश की धर्मनिरपेक्ष सरकार को हिंदुओं के मंदिर चलाने का और अधिग्रहित करने का अधिकार नहीं है । केवल मंदिर व्यवस्थापन की त्रुटियां दूर कर वे मंदिर पुनः भक्तों अथवा समाज को लौटाना आवश्यक है । इसके अनुसार केंद्र और सर्व राज्य सरकारों को करना आवश्यक है । सरकारी नियंत्रण से हिन्दुओं के मंदिर मुक्त होने पर उनका उचित व्यवस्थापन होना आवश्यक है । ईश्‍वर के भक्त ही अच्छे व्यवस्थापक बन सकते हैं । इसके लिए राज्य सरकार को शंकराचार्य, धर्माचार्य, मंदिर न्यासी, हिन्दू संगठन, अखाडा परिषद, संत, महंत आदि से चर्चा करनी चाहिए, ऐसी मांग भी समिति ने की है ।

 

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