होली पर धुलंडी (धूलिवंदन) मनाने का शास्रीय आधार!

होली ब्रह्मांड का एक तेजोत्सव है । होली के दिन ब्रह्मांड में विविध तेजोमय तरंगों का भ्रमण बढता है । इसके कारण अनेक रंग आवश्यकता के अनुसार साकार होते हैं । तथा संबंधित घटक के कार्य के लिए पूरक एवं पोषक वातावरण की निर्मिति करते हैं । इन रंगों के स्वागत हेतु होली के दूसरे दिन ‘धुलंडी अर्थात धूलिवंदन’ का उत्सव मनाया जाता है । इस वर्ष धुलंडी 10 मार्च 2020 को है। आइए इसका महत्त्व जानकर लेते हैं।
धूलिवंदन का महत्त्व
त्रेतायुग के आरंभ में श्रीविष्णु द्वारा अवतार कार्य के आरंभ की स्मृति मनाना!
त्रेतायुग के आरंभ में पृथ्वी पर किए गए पहले यज्ञ के दूसरे दिन श्रीविष्णु ने यज्ञस्थल की भूमि को वंदन किया एवं वहां की मिट्टी दोनों हाथों में उठाकर उसे हवा में उडाया अर्थात श्रीविष्णु ने विभिन्न तेजोमय रंगों द्वारा अवतार कार्य का आरंभ किया । उस समय ऋषि-मुनियों ने यज्ञ की राख अर्थात विभूति शरीर पर लगाई । तब उन्हें अनुभव हुआ कि यज्ञ की विभूति पावन होती है । उसमें सभी प्रकार के रोग दूर करने का सामर्थ्य होता है । इसकी स्मृति के लिए धुलंडी अर्थात धूलिवंदन मनाया जाता है ।
अग्नितत्त्व का लाभ प्राप्त करना
होली के दिन प्रज्वलित की गई होली में प्रत्यक्ष अग्निदेवता उपस्थित रहते हैं । उनका तत्त्व दूसरे दिन भी कार्यरत रहता है । इस तत्त्व का लाभ प्राप्त करने हेतु तथा अग्निदेवता के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने हेतु होली के दूसरे दिन अर्थात फाल्गुन कृष्ण  प्रतिपदा को सुबह होली की राख की पूजा करते हैं । उसके उपरांत उस राख को शरीर पर लगाकर स्नान करते हैं । इसे धुलंडी अर्थात धूलिवंदन कहते है ।
 
धूलिवंदन कैसे मनाएं ?
सूर्योदय के समय होली के स्थानपर पहुंचे ।
होली पर, दूध एवं पानी छिडककर उसे शांत करें ।
होलीकी विभूति को वंदन कर प्रार्थना करें …
वन्दितासि सुरेन्द्रेण ब्रह्मणा शङ्करेण च ।
अतस्त्वं पाहि नो देवि भूते भूतिप्रदा भव ।।
अर्थ : हे धूलि, तुम ब्रह्मा-विष्णु-महेश द्वारा वंदित हो, इसलिए भूते देवी, तुम हमें ऐश्वर्य देने वाली बनो एवं हमारी रक्षा करो ।’
इसके पश्चात् नीचे बैठकर होली की विभूति को अंगूठा तथा अनामिका की चुटकी में लेकर अनामिका से अपने माथे पर अर्थात आज्ञाचक्र पर लगाएं ।
उसके उपरांत वह विभूति पूरे
शरीरपर लगाएं ।
 
धूलिवंदन के दिन मनाया जानेवाला शिव-शिमगा
शिमगा’ शब्द का अर्थ है शिवजी की लीला । शिमगा मूलतः शिवरूप होता है । इसीलिए इसे ‘शिव-शिमगा’ भी कहते हैं । किसी भी कार्य को शिवरूपी ज्ञानमय ऊर्जा का बल प्राप्त हुए बिना वह कार्य पूरा नहीं हो सकता । शिमगा मनाने का उद्देश्य है – ईश्वरीय चैतन्य के आधारपर मानव के जीवन की प्रत्येक कृति को तेजोमय ईश्वरीय अधिष्ठान प्राप्त करवाना । कुछ प्रांतोंमें धूलिवंदन के दिन अपने घर में जन्मे नए शिशु के होली के पहले त्यौहारपर उसकी रक्षा हेतु विशेष विधि की जाती है । इसे ‘शिव-शिमगा’ के नाम से जाना जाता हैं ।
556

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *