जानें बांग्लादेश के चुनाव पर भारत की क्यों है नज़र

भारत के पड़ोसी मुल्क बांग्लादेश में 11वें संसदीय चुनाव के लिए मतदान हो रहा है। यहां की राजनीति अवामी लीग प्रमुख शेख हसीना और बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) मुखिया खालिदा जिया के इर्द-गिर्द ही घूमती है और चुनावों में जंग भी इन्हीं के बीच होती रही है। जहां शेख हसीना के साथ भारत के संबंध हमेशा बेहतर रहे हैं। वहीं खालिदा जिया के नई दिल्ली के साथ रिश्ते हमेशा तनावपूर्ण रहे हैं। ऐसे में यह चुनाव भविष्य में दोनों देशों के बीच संबंधों की दशादिशा नए सिरे से तय करेंगे।

भारत बांग्लादेश में निष्पक्ष चुनाव का पक्षधर रहा है। लेकिन जमात-एइस्लामी की सक्रियता भारत के लिए चिंता का विषय है, क्योंकि उसकी जड़ें पाकिस्तान में हैं। हालांकि यह पार्टी चुनाव नहीं लड़ रही है, क्योंकि 2013 में उसका पंजीकरण रद कर दिया गया था, लेकिन उसने 300 में से 25 सीटों पर अपने सदस्यों को बीएनपी के टिकट पर उतारा है। बीएनपी यहां की अन्य प्रमुख पार्टी है, जो 2001 में सत्ता में आई थी। लेकिन भारत के साथ उसके संबंध तनावपूर्ण रहे थे। ऐसे में कई विशेषज्ञों का मानना है कि यदि दोनों का गठबंधन सत्ता में आ जाता है तो भारत के उत्तर पूर्व में अस्थिरता का खतरा बढ़ जाएगा।

बांग्लादेश में 300 में से 299 संसदीय सीटों पर हो रहे चुनाव में करीब 1,848 प्रत्याशी मैदान में है। देशभर में 40,183 मतदान केंद्र बनाए गए है, जिनमें 10 करोड़ से अधिक मतदाता वोट डालेंगे। मतदान केंद्रों और उसके आसपास की सुरक्षा के लिए करीब छह लाख सुरक्षाकर्मी तैनात किए गए हैं। बता दें कि चुनाव में आवामी लीग की प्रमुख और प्रधानमंत्री शेख हसीना चौथी बार सत्ता हासिल करने की कोशिश में है। दूसरी तरफ मुख्य विपक्षी पार्टी ‘बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी’ की अध्यक्ष और पूर्व प्रधानमंत्री खालिदा जिया भ्रष्टाचार के मामले में सजायाफ्ता होने के चलते चुनाव लड़ने से प्रतिबंधित हैं। वह जेल में सजा काट रही हैं। प्रधानमंत्री शेख हसीना ने आशंका जताई है कि अपनी हार से बचने के लिए विपक्षी बीएनपी चुनाव का बहिष्कार कर सकती है। उन्होंने यह भी कहा कि ऐसी स्थिति में वह चाहती हैं कि उनके व अन्य पार्टी के प्रत्याशी मतदान जारी रहने दें।

1947 में भारत के विभाजन के बाद पूर्वी पाकिस्तान कहलाया जाने वाला बांग्लाभाषी इलाका साल 1971 में पश्चिमी पाकिस्तान के नाम से अलग हुआ और बांग्लादेश नाम से नया मुल्क अस्तित्व में आया था। 1975 में शेख मुजीबुर्रहमान की हत्या और तख्तापलट के बाद 15 साल तक यहां सैन्य शासन रहा। लोकतंत्र की स्थापना 1990 में हुई।

यहां की दो प्रमुख पार्टियों अवामी लीग और बीएनपी के बीच असली लड़ाई होती है। मगर कभी आवामी लीग ने तो कभी बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी ने चुनाव का बहिष्कार किया। 1991 में खालिदा की पार्टी को जीत मिली और वह प्रधानमंत्री बनीं। 1996 के चुनाव में आवामी लीग ने मांग की कि चुनाव पिछली बार की ही तरह केयर टेकर सरकार की निगरानी में हों। जिया ने यह मांग नहीं मानी और छठा चुनाव हो गया। इसमें अवामी लीग ने हिस्सा नहीं लिया। अंतरराष्ट्रीय समुदाय का दबाव बना तो 13वां संविधान संशोधन कर पांच नए प्रावधान बने। तय हुआ कि सरकार का कार्यकाल पूरा होने पर केयर टेकर सरकार बनेगी जो तीन महीने में चुनाव कराएगी। इस तरह से सातवें आम चुनाव 1996 में हुए और आवामी लीग सत्ता में आ गई। शेख हसीना प्रधानमंत्री बन गईं। फिर 2001 का चुनाव (आठवां) भी केयर टेकर सरकार की निगरानी में हुआ और जि़या प्रधानमंत्री बनीं।

जब नौवें चुनाव की बारी आई तो विवाद हो गया। 2006 में मुद्दा उठा कि केयर टेकर सरकार का मुख्य सलाहकार कौन होगा। खालिदा जिया ने बदलाव करके जजों की रिटायरमेंट की उम्र बढ़ा दी। आरोप लगा कि ऐसा इसलिए किया गया ताकि उनकी पसंद के चीफ जस्टिस उस समय रिटायर हों, जब वह केयर टेकर सरकार के मुख्य सलाहकर बनें। आवामी लीग ने इसका विरोध किया और कहा कि हम चुनाव में हिस्सा नहीं लेंगे। इसके बाद सेना ने अप्रत्यक्ष तौर पर दखल दिया। दिसंबर 2008 में नौवें संसदीय चुनाव हुए जिनमें शेख हसीना को बहुमत मिला। उन्होंने 15 वां संविधान संशोधन किया और 13वें संशोधन में की गई केयर टेकर सरकार की व्यवस्था को खत्म किया।

भारत-बांग्लादेश के संबंधों में हर मोर्चे पर परिवर्तन आया है। दोनों देशों के बीच चल रही अनेक परियोजनाएं पूरी होने को हैं। कोलकाता से बांग्लादेश होती हुई उत्तर पूर्व क्षेत्र में जाने वाली बस सेवा शुरू हो गई है, जिससे उस क्षेत्र में जाने के लिए समय व दूरी में कमी आई है। पश्चिम बंगाल के उत्तरी इलाके में भूमि सीमा विवाद के साथ लंबे समय से अटका समुद्री सीमा विवाद भी हल हो गया है। तीस्ता जल-बंटवारे का समाधान भी प्रगति की ओर है।

2014 में चुनाव हुए तो खालिदा जिया की पार्टी ने सवाल उठाया कि अगर केयर टेकर सरकार की निगरानी के बिना चुनाव होंगे तो इनके निष्पक्ष होने की गारंटी नहीं है। ऐसे में उसने चुनाव का बहिष्कार कर दिया। नतीजा यह रहा कि अधिकतर सीटों पर आवामी लीग निर्विरोध जीत गई और लगातार दूसरी बार उसकी सरकार बन गई।

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